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४ सितंबर १९५७
आज किसीने मुझसे एक प्रश्न पूछा हैं। यह मेरे उन शब्दोंसे सम्बन्ध रखता है जो मैंने तुमसे १४ अगस्तको, श्रीअरविन्दके जन्मदिवसके पहले कहें थे । यह प्रश्न मुझे रोचक प्रतीत हुआ क्योंकि इसका सम्बन्ध उन वाक्योंमेंसे एकके साथ है जो जरा गूढुया रहस्यमय होते है और सरली- करणके कारण अनेकार्थक या अस्पष्ट-से हों जाते है । जानबूझकर ही उन्हें ऐसा रवा गया था ताकि प्रत्येक ठयक्ति उसे अपनी चेतनाके मंत्रके अनुसार समझ सकें । यह बात मैं तुम्हें पहले कई बार बता चुकी हू कि यह संभव है कि ठीक उन्हीं शब्दोंको विभिन्न स्तरोंपर समझा जाय । इन शब्दोंको जानबूझकर सरल और जानबुद्कर ही अपास्त गया था ताकि उन्हें अर्थकी जिस जटिलताको व्यक्त करना था उसके वाहक बन सकें ।
वह अर्थ विभिन्न स्तरोंपर थोडा-थोडा भिन्न होता है परन्तु वह एक- दूसरेका पूरक होता है और वह तबतक सचमुच पूर्ण नहीं होता जबतक कि
१६८ उसे एक साथ सब स्तरोंपर न समझा जाय । सच्ची समझ सब अर्थोंकी एक साथ समझ है, उसमें सभी अर्थ एक साथ दृष्टिमें, पकडूमें, समझमें आ जाते है । पर उन्हें, व्यक्त करनेके लिये, हमारे पास जो भाषा है वह बहुत अक्षम है, हमें चीजोंको विवश होकर एकके बाद एक करके, बहुत-से शब्दों और अनेक व्याख्याओंके द्वारा कहना पड़ता है.. । मैं भी अब वही करने जा रही हू!
यह प्रश्न उन शब्दोंसे संबंधित है जो मैंने श्रीअरविन्दके जन्मके बारेमें कहें थे (यह उनके जन्मदिनसे पहले कहें गायें थे) । मैंने उसका एक ''सनातन जन्म''के रूपमें वर्णन किया था । मुझसे पूछा गया है कि ''सना- तन''से मेरा क्या. अभिप्राय है ।
स्वभावत:, यदि इन शब्दोंको अक्षरशः: लिया जाय तो एक ''सनातन जन्म' 'का कुछ विशेष अर्थ नहीं बनता । पर मैं तुम्हें अभी बताऊंगी कि कैसे इसकी एक भौतिक व्याख्या या अर्थ, एक मानसिक अर्थ, एक चैत्य अर्थ और तुक आध्यात्मिक अर्थ हो सकता है -- और वास्तवमें है मी । भौतिक रूपमें, इसका अर्थ यह है कि इस जन्मके परिणाम तबतक रहेंगे जबतक स्वयं पृथ्वी रहेगी । श्रीअरविन्दके जन्मके परिणाम पृथ्वीके संपूर्ण अस्तित्वकालमे अनुभव होते रहेंगे । अतः मैंने इसे कुछ कवित्वपूर्ण ढंगसे 'सनातन'' कहा है ।
मानसिक रूपमें, यह एक ऐसा जन्म है जिसकी स्मृति सनातन कालतक बनी रहेगी । आगे युगोतक श्रीअरविन्दका जन्म और उसके प्रभाव स्मरण किये जायेंगे ।
चैत्य रूपमें यह एक ऐसा जन्म है जिसकी पुनरावृत्ति विश्वके इतिहासमें शाश्वत रूपसे युगयुगतक होती रहेगी । यह एक ऐसा प्रादुर्भाव है जो पृथ्वीके इतिहासमें, युग-युगमें, समय-समयपर होता है, अर्थात् यह जन्म स्वयं अपने-आपको नये-नये रूपोंमें बार-बार दुहराता है और शायद प्रत्येक बार कुछ अधिक बड़ी चीज -- अधिक सिद्ध और अधिक पूर्ण चीज -- अपने साथ लाता है, परन्तु यह पार्थिव शरीरमें अवतरित होने, अभिव्यक्त होने, जन्म लेनेकी वही क्रिया होती है ।
और अन्तमें, विशुद्ध आध्यात्मिक दृष्टिसे, यह कहा जा सकता है कि यह जन्म पृथ्वीपर ''सनातन''का जन्म है । क्योंकि प्रत्येक बार जब अव- तार भौतिक रूप ग्रहण करते है ते। यह पृथ्वीपर स्वयं ''सनातन''का जन्म होता है ।
यह सब बात, दो शब्दोंमें आ गयी है : ''सनातन जन्म'' । तो, अपनी बात पूरी करते हुए अन्तमें, मैं तुम्हें, एक सलाह देती हू -
भविष्यमें, अपने-आपसे यह कहनेसे पहले : ''लो, इसका, भला, क्या अर्थ है, मुझे ते। कुछ समझमें नहीं आया, शायद ठीकसे अभिव्यक्त नहीं किया गया,'' तुम अपने-आपसे यह कह सकते हों : ''संभवत: मैं उस स्तरपर नहीं हू जहां मैं इसे समझ संक्,'' और तब शब्दोंके पीछे केवल शब्दोंको नही, बल्कि किसी और चीजको खोजनेकी कोशिश करो । यह लो!
मैं सोचती हू हमारे ध्यानके लिये यह एक अच्छा विषय है ।
( ध्यान)
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